शिव तांडव स्तोत्र का परिचय शिव तांडव स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और भावपूर्ण स्तुति है, जिसे लंकापति रावण ने भगवान शिव की महिमा में रचा था। यह स्तोत्र भगवान शिव के रौद्र और तांडव रूप का वर्णन करता है, जिसमें उनकी दिव्यता, शक्ति, सौंदर्य और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अद्भुत चित्रण मिलता है। संस्कृत में रचित यह स्तोत्र न केवल काव्यात्मक रूप से समृद्ध है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन को शांति, ऊर्जा और आत्मबल प्राप्त होता है। यह भक्तों को नकारात्मकता से मुक्त कर सकारात्मकता की ओर प्रेरित करता है। शिव तांडव स्तोत्र का उच्चारण करते समय हर श्लोक में भगवान शिव की महिमा की गूंज सुनाई देती है, जो साधक को शिव के सान्निध्य में ले जाती है।
Shiv Tandav Stotra Lyrics – शिव तांडव स्तोत्र
॥ शिव तांडव स्तोत्र॥
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
महुमडुमह्रुमनिनादवडुमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१ ॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥ २ ॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा- निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं मडा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तु नः ॥ ६ ॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ ७ ॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर- कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ ८ ॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा- विडंवि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥
अगर्वसर्वमंगलाकलाकदम्यमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥ १० ॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर- द्धगद्धगाद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाद-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल- ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥ ११ ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमलजी- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुद्दद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ १२ ॥
कदा निलिंपनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमंजलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्य मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहानिश परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥ १४ ॥
प्रचण्ड वाडवानलप्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषणो जगज्जयाय जायताम् ॥ १५ ॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुक्तमोत्तम स्तयं पठन्स्मरन् युवन्नरो विशुद्धमेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं विमोहनं हि देना तु शंकरस्य चिंतनाम || १६ ॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदेव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥ १७ ॥
॥ शिव तांडव स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥