दिग्बंधन रक्षा स्तोत्र हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पवित्र ग्रंथ है, जिसका उद्देश्य बुरे आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करना है। इसे विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में मन को शांत और सुरक्षा प्रदान करने के लिए पढ़ा जाता है। दिग्बंधन रक्षा स्तोत्र में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन किया गया है, जो व्यक्ति को आत्मविश्वास और साहस प्रदान करता है। यह स्तोत्र धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा और साधना में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है, जो भक्ति और आस्था को मजबूत बनाता है।
यह परिचय न केवल दिग्बंधन रक्षा स्तोत्र की महिमा को दर्शाता है, बल्कि इसके उपयोग और लाभ को भी स्पष्ट करता है।
Digbandhan Raksha Stotra Lyrics – दिग्बन्धन रक्षा स्तोत्र
आत्म रक्षार्थ तथा यज्ञ रक्षार्थ निम्न मन्त्र से जल, सरसों या पीले चावलों को(अपने चारों ओर) छोड़ें –
मूल मन्त्र:
ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः ।
दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।
उत्तरे श्री पति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥
ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु ।
अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु ॥
अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ।
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ।
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।
सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥