श्री हनुमत् भुजङ्ग स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान हनुमान की असीम शक्तियों को समर्पित है। यह स्तोत्र ‘भुजंग प्रयात’ छंद में रचित है और इसे श्री रामभक्त हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से जपा जाता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त को सभी प्रकार के भय, रोग एवं संकटों से मुक्ति मिलती है। यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक बल प्रदान करने में भी सक्षम है। श्री हनुमान की कृपा पाने के लिए यह स्तोत्र सर्वोत्तम साधन माना गया है।
Hanuman Bhujanga Stotram Lyrics – श्री हनुमत् भुजङ्ग स्तोत्रम्
॥ श्री हनुमत् भुजङ्ग स्तोत्रम्॥
स्फुरद्विद्युदुल्लासवालाग्रघण्टा-
झणत्कारनादप्रवृद्धाट्टहासम् ।
भजे वायुसूनुं भजे रामदूतं भजे वज्रदेहं भजे भक्तयन्धुम् ॥ १ ॥
प्रपत्रानुरागं प्रभाकाञ्चनाइ जगद्गीतशीर्यं तुषाराद्रिशोर्यम् ।
तृणीभूतहेति रणोद्यद्विभूतिं भजे वायुपुत्रं पवित्रात् पवित्रम् ॥ २॥
भजे रामरम्भावनीनित्यवासं भजे
यालभानुप्रभाचारुहासम् ।
भजे चन्द्रिकाकुन्दमन्दारभासं भजे सन्ततं रामभूपालदासम् ॥ ३ ॥
भजे लक्ष्मणप्राणरक्षातिदक्षं भजे तोषितानेकगीर्वाणपक्षम ।
भजे घोरसंग्रामसीमाडता भने रामनामातिसंप्राप्तरक्षम् ॥ ४ ॥
मृगाधीशनाथं क्षितिक्षिप्तपादं घनाक्रान्तनयं कटिस्थोडुसङ्घम् ॥
वियद्व्याप्तकेशं भुजा लेषिताश जय श्रीसमेतं भजे रामदूतम् ॥ ५ ॥
चलद्वालघातभ्रमच्चक्रवालं कठोरादृडासप्रभिन्नाधिकाण्डम् ।
महासिंहनादाद्विशीर्णत्रिलोकं भजे चाञ्जनेयं प्रभुं वज्रकायम् ॥ ६ ॥
रणे भीषणे मेघनादे सनादे सरोषं समारोप्यसौमित्रिमंसे ।
घनानां खगानां सुराणां च मार्गे नटन्तं ज्वलन्तं हनूमन्तमीडे ॥ ७ ॥
नरवध्वस्तजंभारिदम्भोलिधारं भुजाग्रेण निर्धूतकालोग्रदण्डम् ।
पदाघातभीताद्दिजाताऽधिवासं रणक्षोणिदक्षं भजे पिङ्गलाक्षम् ॥ ८ ॥
महाभूतपीडां महोत्पातपीडां महाव्याधिपीडां महाधिप्रपीडाम् ।
डरत्याशु ते पादपद्मानुरक्ति नमस्ते कपिश्रेष्ठ रामप्रियाय ॥ ९ ॥
सुधासिन्धुमुल्लङ्घ्य सान्द्रे निशीथे सुधा चौषधीस्ताः प्रगुप्तप्रभावाः ।
क्षणे द्रोण शेलस्य पृष्ठे प्ररुठाः त्वया वायुसूनो किलानीय दत्ताः ॥ १० ॥
समुद्र तरङ्गादिरौद्रं विनिद्रो विलङ्घ्योडुसइयं स्तुतो मर्त्यसंधेः ।
निरातङ्कमाविश्य लङ्कां विशको भवानेव सीतावियोगापहारी ॥ ११ ॥
नमस्ते महासत्ववाहाय नित्यं नमस्ते महावज्रदेहाय तुभ्यम् ।
नमस्ते पराभूतसूर्याय तुभ्यं नमस्ते कृतामर्त्यकार्याय तुभ्याम् ॥ १२ ॥
नमस्ते सदा ब्रह्मचर्याय तुभ्यं नमस्ते सदा वायुपुत्राय तुभ्यम् ।
नमस्ते सदा पिङ्गलाक्षाय तुभ्यं नमस्ते सदा रामभक्ताय तुभ्यम् ॥ १३॥
हनूमत्भुजङ्गप्रयातं प्रभाते प्रदोषे दिया चार्द्धरात्रेऽपि मर्त्यः ।
पठन् भक्तियुक्तः प्रमुक्ताघजालः नराः सर्वदा रामभक्तिं प्रयान्ति ॥ १४॥
॥ इति श्री हनुमत् भुजङ्ग स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥