हनुमान कृत श्रीराम स्तुति Hanuman Kruta Sri Ram Stuti

Hanuman Kruta Sri Ram Stuti - हनुमान कृत श्रीराम स्तुति

हनुमान कृत श्रीराम स्तुति एक अद्भुत और पवित्र प्रार्थना है जो भक्त शिरोमणि हनुमान द्वारा श्रीराम की महिमा का गान करती है। इस स्तुति में, हनुमान जी श्रीराम के अनेक गुणों, उनकी वीरता, उनके धर्म के प्रति समर्पण और उनकी करुणा का वर्णन करते हैं। यह स्तुति भक्तों को श्रीराम के चरणों में सच्ची भक्ति और समर्पण की भावना से भर देती है। इसके पाठ से न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि आत्मा को भी एक नई ऊर्जा का अनुभव होता है। हनुमान कृत श्रीराम स्तुति का जप व्यक्ति को आंतरिक शक्ति प्रदान करता है और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सहायक होता है।

Hanuman Kruta Sri Ram Stuti Lyrics – हनुमान कृत श्रीराम स्तुति

॥ हनुमान कृत श्रीराम स्तुति॥

नमो रामाय हरये विष्णवे प्रभविष्णवे, आदिदेवाय देवाय पुराणाय गदाभृते |

विष्टरे पुष्पके नित्यं निविष्टाय महात्मने, प्रहष्ट वानरानीकजुष्टपादाम्बुजाय ते ॥१॥

निष्पिष्ट राक्षसेन्द्राय जगदिष्टविधायिने, नमः सहस्त्रशिरसे सहस्त्रचरणाय च |

सहस्त्राक्षाय शुद्धाय राघवाय च विष्णवे, भक्तार्तिहारिणे तुभ्यं सीतायाः पतये नमः ॥२॥

हरये नारसिंहाय दैत्यराजविदारिणे, नमस्तुभ्यं वराहाय दन्ष्ट्रोद्धृतवसुन्धर |

त्रिविक्रमयाय भवते बलियज्ञविभेदिने, नमो वामन रूपाय नमो मन्दरधारिणे ॥३॥

नमस्ते मत्स्यरूपाय त्रयीपालनकारिणे, नमः परशुरामाय क्षत्रियान्तकराय ते ।

नमस्ते राक्षसघ्नाय नमो राघवरूपिणे, महादेवमहाभीममहाकोदण्डभेदिने ॥४॥

क्षत्रियान्तकरक्रूरभार्गवत्रास​कारिणे, नमोस्त्वहल्यासंतापहारिणे चापधारिणे ।

नागायुतबलोपेतताटकादेहहारिणे, शिलाकठिनविस्तारवालिवक्षोविभेदि​ने ॥५॥

नमो मायामृगोन्माथकारिणेsज्ञानहारिणे, दशस्यन्दनदु:खाब्धिशोषणागत्स्यरूपिणे ।

अनेकोर्मिसमाधूतसमुद्रमदहारिणे, मैथिलीमानसाम्भोजभानवे लोकसाक्षिणे ॥६॥

राजेन्द्राय नमस्तुभ्यं जानकीपतये हरे, तारकब्रह्मणे तुभ्यं नमो राजीवलोचन ।

रामाय रामचन्द्राय वरेण्याय सुखात्मने, विश्वामित्रप्रियायेदं नमः खरविदारिणे ॥ ७॥

प्रसीद देवदेवेश भक्तानामभयप्रद, रक्ष मां करुणासिन्धो रामचन्द्र नमोsस्तु ते ।

रक्ष मां वेदवचसामप्यगोचर राघव, पाहि मां कृपया राम शरणं त्वामुपैम्यहम्॥८॥

रघुवीर महामोहमपाकुरु ममाधुना, स्नाने चाचमने भुक्तौ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु |

सर्वावस्थासु सर्वत्र पाहि मां रघुनन्दन ॥९॥

महिमानं तव स्तोतुं कः समर्थो जगत्त्रये, त्वमेव त्वन्महत्वं वै जानासि रघुनन्दन ॥१०॥