नृसिंह स्तोत्र - Narsingh Stotra

नृसिंह स्तोत्र Narsingh Stotra

श्री नृसिंह स्तोत्र भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की महिमा का वर्णन करने वाला एक पावन स्तोत्र है। यह अवतार भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए प्रकट हुआ था, जो असुरों के अत्याचार से मुक्ति का प्रतीक है। इस स्तोत्र में भगवान नृसिंह की उग्र एवं कृपालु दोनों रूपों की स्तुति की गई है, जो भक्तों को भयमुक्ति एवं आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।

नियमित पाठ से भक्तों को शत्रुओं से सुरक्षा, मानसिक शांति और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र भक्ति और साहस का अनुपम संगम है, जो हर संकट में शरण देने वाला माना जाता है।

Narsingh Stotra Lyrics – नृसिंह स्तोत्र

नृसिंह स्तोत्र॥

उदयरवि सहस्रद्योतितं रुक्षवीक्षं प्रळय जलधिनादं कल्पकृद्वह्नि वक्त्रम् ।
सुरपतिरिपु वक्षश्छेद रक्तोक्षिताङ्गं प्रणतभयहरं तं नारसिंहं नमामि ।।

प्रळयरवि कराळाकार रुक्चक्रवालं विरळय दुरुरोची रोचिताशांतराल ।
प्रतिभयतम कोपात्त्युत्कटोच्चाट्टहासिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १ ।।

सरस रभसपादा पातभाराभिराव प्रचकितचल सप्तद्वन्द्व लोकस्तुतस्त्वम् ।
रिपुरुधिर निषेकेणैव शोणाङ्घ्रिशालिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। २ ।।

तव घनघनघोषो घोरमाघ्राय जङ्घा परिघ मलघु मूरु व्याजतेजो गिरिञ्च । घनविघटतमागाद्दैत्य जङ्घालसङ्घो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ३ ।।

कटक कटकराजद्धाट्ट काग्र्यस्थलाभा प्रकट पट तटित्ते सत्कटिस्थातिपट्वी ।
कटुक कटुक दुष्टाटोप दृष्टिप्रमुष्टौ दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे || ४ ||

प्रखर नखर वज्रोत्खात रोक्षारिवक्षः शिखरि शिखर रक्त्यराक्तसंदोह देह |
सुवलिभ शुभ कुक्षे भद्र गंभीरनाभे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ५ ।।

स्फुरयति तव साक्षात्सैव नक्षत्रमाला क्षपित दितिज वक्षो व्याप्तनक्षत्रमागम् ।
अरिरधर जान्वासक्त हस्तद्वयाहो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ६ ।।

कटुविकट सटोघोद्धट्टनाद्भ्रष्टभूयो घनपटल विशालाकाश लब्धावकाशम् ।
करपरिघ विमदर् प्रोद्यमं ध्यायतस्ते दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ७ ।।

हठलुठ दल घिष्टोत्कण्थदष्टोष्ठ विद्युत् सटशठ कठिनोरः पीठभित्सुष्ठुनिष्ठाम् ।
पठतिनुतव कण्थाधिष्ठ घोरांत्रमाला दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ८ ।।

बहुमिहिराभासह्यसंहाररंहो हुतवह बहुहेति हेपिकानंत हेति ।
अहित विहित मोहं संवहन् सैंहमास्यम् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ९ ।।

गुरुगुरुजित्कंद्रांव निमणि भणगे वहिदीप्ते ।
दधदति कटुदंष्प्रे भीषणोज्जिह्न वक्त्रे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १० ।।

अधरित विबुधाब्धि ध्यानधैयं विदीध्य द्विविध विबुधधी श्रद्धापितेंद्रारिनाशम् ।
विदधदति कटाहोद्धट्टनेद्धाट्टहासं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। ११ ।।

त्रिभुवन तृणमात्र त्राण तृष्णंतु नेत्र त्रयमति लघिताचिर्विष्र्ष्ट पाविष्टपादम् ।
नवतर रवि ताम्रं धारयन् रुक्षवीक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १२ ।।

भ्रमद भिभव भूभृद्भूरिभूभारसद्भिद् भिदनभिनव विदभ्रू विभ्रमादभ्र शुभ्र ।
ऋभुभव भय भेत्तभासि भो भो विभाभिदर्ह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १३ ।।

श्रवण खचित चञ्चत्कुण्ड लोच्चण्डगण्ड भ्रुकुटि कटुललाट श्रेष्ठनासारुणोष्ठ ।
वरद सुरद राजत्केसरोत्सारि तारे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १४ ।

प्रविकच कचराजद्रन कोटीरशालिन् गलगत गलदुत्रोदार रत्नाङ्गदाढ्य ।
कनक कटक काञ्ची शिञ्जिनी मुद्रिकावन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १५ ।।

अरिरमसि खेटी बाणचापे गदां सन्मुसलमपि दधानः पाशवयार्ंकुशौ च ।
करयुगल धृतान्त्रत्रग्विभिन्नारिवक्षो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १६ ।।

चट चट चट दूरं मोहय भ्रामयारिन् कडि कडि कडि कायं ज्वारय स्फोटयस्व ।
हि जहि वेगं शात्रवं सानुबंधं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १७ ।।

विधिभव विबुधेश भ्रामकाग्नि स्फुलिङ्ग प्रसवि विकट दंष्प्रोज्जिह्ववक्त्र त्रिनेत्र |
कल कल कलकामं पाहिमां तेसुभक्तं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १८ ।।

कुरु कुरु करुणां तां साकुरां दैत्यपूते दिश दिश विशदांमे शाश्वतीं देवदृष्टिम् ।
जय जय जय मुर्तेऽनार्त जेतव्य पक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।। १९ ।।

स्तुतिमिति सेवितानाही पिरांठा मालिनी साऽभितोऽनम् ।
तदखिल गुरुमाग्र्य श्रीधरुपालसद्भिः सुनिय मनय कृत्यैः सद्गुणैर्नित्ययुक्ताः ।। २० ।।

लिकुच तिलकसूनुः सद्धितार्थानुसारी नरहरि नुतिमेतां शत्रुसंहार हेतुम् ।
अकृत सकल पापध्वंसिनीं यः पठेत्तां व्रजति नृहरिलोकं कामलोभाद्यसक्तः ।। २१ ।।

।। इति श्री नृसिंह स्तुतिः संपूणर्म् नृसिंह स्तोत्र ।।

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