सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र श्रीमद्भगवद्गीता के सार रूप में प्रस्तुत एक अद्वितीय स्तोत्र है, जिसमें सात श्लोकों के माध्यम से सम्पूर्ण गीता का सार संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है जिनके पास सम्पूर्ण गीता पाठ करने का समय नहीं है, किन्तु वे गीता का सार प्राप्त करना चाहते हैं। इन सात श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए जीवन के मूलभूत सिद्धांतों – कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का सार संग्रहित है। नियमित पाठ से मन को शांति एवं जीवन को दिशा मिलती है।
Saptashloki Gita Stotra Lyrics – सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र
॥ सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र॥
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ।।१।।
स्थाने ऋषीकेश तव प्रकीत्र्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ।। २ ।।
सर्वतः प्राणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतःश्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ।। ३ ।।
कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।। ४ ।।
ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ।। ५ ।।
सर्वस्यचाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तक्रद्वेदविदेव चाहम् ।। ६ ।।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ।। ७ ।।
।। इति सप्तश्लोकी गीता स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।