शिवस्तुति मंत्र Shiv Stuti Mantra

Shiv Stuti Mantra - शिवस्तुति मंत्र

कृष्णाश्रय स्तुति, जिसका अर्थ है भगवान कृष्ण की शरण में स्तुति, एक भक्ति भावना से ओत-प्रोत अभिव्यक्ति है। यह उनकी दिव्यता, करुणा और लीलाओं का गुणगान करती है। भगवान कृष्ण, जो अनंत काल से भक्तों के हृदय में वास करते हैं, उनकी भक्ति में लीन होकर अनेक भक्तों ने अपने जीवन को सार्थक बनाया है।

कृष्णाश्रय स्तुति में भगवान कृष्ण के बाल रूप की चंचलता, उनके युवा रूप की वीरता और उनके ज्ञानी रूप की गहराई का वर्णन होता है। उनकी लीलाएँ, जैसे कि गोवर्धन पर्वत को उठाना, कालिया नाग का दमन करना, और रासलीला करना, उनकी दिव्य शक्तियों का प्रमाण हैं।

इस स्तुति में भगवान कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति का भाव निहित होता है। यह स्तुति न केवल भगवान कृष्ण की महिमा को दर्शाती है, बल्कि भक्तों को भी उनकी शरण में आने का मार्ग दिखाती है। यह स्तुति भक्तों को यह सिखाती है कि कैसे वे अपने जीवन में भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों को अपनाकर एक सार्थक और आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं।

Shiv Stuti Mantra Lyrics – शिवस्तुति मंत्र

॥ शिवस्तुति मंत्र॥

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम ।१।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।२।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।३।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।४।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।५।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड ।६।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम ।७।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम् ।८।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य :।९।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।१०।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन ।११।