श्री वेंकटेश स्तोत्रम् - Shri Venkatesa Stotram

श्री वेंकटेश स्तोत्रम् Shri Venkatesa Stotram

श्री वेंकटेश स्तोत्रम् भगवान वेंकटेश्वर (बालाजी) की महिमा का वर्णन करने वाला एक पावन स्तोत्र है, जिसे भक्तों द्वारा सदियों से पूजा एवं जप में प्रयुक्त किया जाता रहा है। यह स्तोत्र न केवल भगवान विष्णु के तिरुपति स्वरूप की आराधना करता है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक शांति, सुख-समृद्धि और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।

इस स्तोत्र में देवता की अनंत कृपा, उनके दिव्य गुणों और भक्तों के कष्ट हरने की शक्ति का वर्णन किया गया है। प्रतिदिन इसका पाठ करने से मन को शुद्धता, आत्मबल और दैवीय आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। श्री वेंकटेश स्तोत्रम् की महत्ता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक बल्कि मानसिक शांति का भी स्रोत है।

भगवान वेंकटेश्वर की कृपा पाने के लिए इस स्तोत्र का नियमित जप अत्यंत फलदायी माना गया है। यह भक्ति और समर्पण का एक शक्तिशाली माध्यम है, जो हर साधक को दिव्य अनुभूति कराता है।

Shri Venkatesa Stotram Lyrics – श्री वेंकटेश स्तोत्रम्

श्री वेंकटेश स्तोत्रम्॥

वेङ्कटेशो वासुदेवः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ।
सङ्कर्षणोऽनिरुद्धश्च शेषाद्रिपतिरेव च ॥ १॥

जनार्दनः पद्मनाभो वेङ्कटाचलवासनः ।
सृष्टिकर्ता जगन्नाथो माधवो भक्तवत्सलः ॥ २ ॥

गोविन्दो गोपतिः कृष्णः केशवो गरुडध्वजः ।
वराहो वामनश्चैव नारायण अधोक्षजः ॥ ३ ॥

श्रीधरः पुण्डरीकाक्षः सर्वदेवस्तुतो हरिः ।
श्रीनृसिंहो महासिंहः सूत्राकारः पुरातनः ॥ ४॥

रमानाथो महीभर्ता भूधरः पुरुषोत्तमः ।
चोळपुत्रप्रियः शान्तो ब्रह्मादीनां वरप्रदः ॥ ५॥

श्रीनिधिः सर्वभूतानां भयकृद्भयनाशनः ।
श्रीरामो रामभद्रश्च भवबन्धैकमोचकः ॥ ६॥

भूतावासो गिरावासः श्रीनिवासः श्रियः पतिः ।
अच्युतानन्तगोविन्दो विष्णुर्वेङ्कटनायकः ॥ ७॥

सर्वदेवैकशरणं सर्वदेवैकदैवतम् ।
समस्तदेवकवचं सर्वदेवशिखामणिः ॥ ८॥

इतीदं कीर्तितं यस्य विष्णोरमिततेजसः ।
त्रिकाले यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ॥ ९ ॥

राजद्वारे पठेद्घोरे सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे ।
भूतसर्पपिशाचादिभयं नास्ति कदाचन ॥ १०॥

अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो धनवान् भवेत् ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद् बद्धो मुच्येत बन्धनात् ॥ ११॥

यद्यदिष्टतमं लोके तत्तत्प्राप्नोत्यसंशयः ।
ऐश्वर्यं राजसम्मानं भक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥ १२ ॥

विष्णोर्लोकिकसोपानं सर्वदुःखैकनाशनम् ।
सर्वैश्वर्यप्रदं नृणां सर्वमङ्गलकारकम् ॥ १३ ॥

मायावी परमानन्दं त्यक्त्वा वैकुण्ठमुत्तमम् ।
स्वामिपुष्करिणीतीरे रमया सह मोदते ॥ १४ ॥

कल्याणाद्भुतगात्राय कामितार्थप्रदायिने ।
श्रीमद्वेङ्कटनाथाय श्रीनिवासाय ते नमः ॥ १५॥

वेङ्कटाद्रिसमं स्थानं ब्रह्माण्डे नास्ति किञ्चन ।
वेङ्कटेशसमो देवो न भूतो न भविष्यति ॥ १६॥

॥ इति ब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्मनारदसंवादे श्री वेङ्कटेश स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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