श्री गणेश पञ्चरत्नं स्तोत्र एक प्राचीन और महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसे आदिगुरु शंकराचार्य ने रचा था। इसमें भगवान गणेश के पांच प्रमुख गुणों का वर्णन किया गया है, जो भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में किया जाता है, जिससे सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं। श्री गणेश पञ्चरत्नं स्तोत्र में गणपति के विभिन्न रूपों और उनके दिव्य गुणों का वर्णन है, जो भक्तों को प्रेरणा और आशीर्वाद देते हैं। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि भी लाता है।
Sri Ganesha Pancharatnam Stotram Lyrics – श्री गणेश पञ्चरत्नं स्तोत्र
॥ श्री गणेश पञ्चरत्नं स्तोत्र॥
मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम् कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥