कृष्णाश्रय स्तुति, जिसका अर्थ है भगवान कृष्ण की शरण में स्तुति, एक भक्ति भावना से ओत-प्रोत अभिव्यक्ति है। यह उनकी दिव्यता, करुणा और लीलाओं का गुणगान करती है। भगवान कृष्ण, जो अनंत काल से भक्तों के हृदय में वास करते हैं, उनकी भक्ति में लीन होकर अनेक भक्तों ने अपने जीवन को सार्थक बनाया है।
कृष्णाश्रय स्तुति में भगवान कृष्ण के बाल रूप की चंचलता, उनके युवा रूप की वीरता और उनके ज्ञानी रूप की गहराई का वर्णन होता है। उनकी लीलाएँ, जैसे कि गोवर्धन पर्वत को उठाना, कालिया नाग का दमन करना, और रासलीला करना, उनकी दिव्य शक्तियों का प्रमाण हैं।
इस स्तुति में भगवान कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति का भाव निहित होता है। यह स्तुति न केवल भगवान कृष्ण की महिमा को दर्शाती है, बल्कि भक्तों को भी उनकी शरण में आने का मार्ग दिखाती है। यह स्तुति भक्तों को यह सिखाती है कि कैसे वे अपने जीवन में भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों को अपनाकर एक सार्थक और आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं।
Shri Krishnashraya Stuti Lyrics – कृष्णाश्रय स्तुति
॥ कृष्णाश्रय स्तुति॥
सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम ॥१॥
म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥२॥
गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥३॥
अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥४॥
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥५॥
नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥६॥
अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम ॥७॥
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम ॥८॥
विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम ॥९॥
सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थ समुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम् ॥१०॥
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत् ॥११॥
॥ इति श्री वल्लभाचार्यविरचितः कृष्णाश्रय सम्पूर्णः ॥